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सु॒युग्भि॒रश्वैः॑ सु॒वृता॒ रथे॑न॒ दस्रा॑वि॒मं शृ॑णुतं॒ श्लोक॒मद्रेः॑। किम॒ङ्ग वां॒ प्रत्यव॑र्तिं॒ गमि॑ष्ठा॒हुर्विप्रा॑सो अश्विना पुरा॒जाः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

suyugbhir aśvaiḥ suvṛtā rathena dasrāv imaṁ śṛṇutaṁ ślokam adreḥ | kim aṅga vām praty avartiṁ gamiṣṭhāhur viprāso aśvinā purājāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सु॒युक्ऽभिः॑। अश्वैः॑। सु॒ऽवृता॑। रथे॑न। दस्रौ॑। इ॒मम्। शृ॒णु॒त॒म्। श्लोक॑म्। अद्रेः॑। किम्। अ॒ङ्ग। वा॒म्। प्रति॑। अव॑र्तिम्। गमि॑ष्ठा। आ॒हुः। विप्रा॑सः। अ॒श्वि॒ना॒। पु॒रा॒ऽजाः॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:58» मन्त्र:3 | अष्टक:3» अध्याय:4» वर्ग:3» मन्त्र:3 | मण्डल:3» अनुवाक:5» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब अग्नि आदि पदार्थ चालितयान विषयक शिल्पिकृत्य को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (दस्रौ) दुःखों को नाश करनेवाले (अश्विना) सूर्य्य और चन्द्रमा के सदृश वर्त्तमान अध्यापक और उपदेशक ! आप दोनों (सुयुग्भिः) उत्तम प्रकार जोड़े गये (अश्वैः) अग्नि आदि पदार्थों से युक्त (सुवृता) उत्तम (रथेन) विमान आदि वाहन से (अद्रेः) मेघ के सदृश हम लोगों की (इमम्) इस (श्लोकम्) वाणी को (शृणुतम्) सुनो और (अङ्ग) हे पूर्वोक्त अध्यापक उपदेशको ! जो (वाम्) तुम दोनों को (गमिष्ठा) अत्यन्त चलनेवाले (पुराजाः) प्रथम उत्पन्न हुए (विप्रासः) बुद्धिमान् विद्वान् लोग (आहुः) कहते हैं वे आप दोनों (प्रति, अवर्त्तिम्) अवर्त्तमान अर्थात् अलभ्य पदार्थ को (किम्) क्यों नहीं प्राप्त हों किन्तु प्राप्त ही होवैं ॥३॥
भावार्थभाषाः - जो विद्वान् लोग अग्नि आदि विद्या से चलाये वाहनों से व्यवहार करैं, वे किस-किस ऐश्वर्य्य को न प्राप्त होवैं ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाग्न्यादिपदार्थचालितयानविषयकं शिल्पिकृत्यमाह।

अन्वय:

हे दस्रावश्विना युवां सुयुग्भिरश्वैर्युक्तेन सुवृतारथेनागत्याऽद्रेरिवास्माकमिमं श्लोकं शृणुतम्। अङ्ग यौ वां गमिष्ठा पुराजा विप्रास आहुस्तौ युवां प्रत्यवर्त्तिं किं न गच्छेतम्। किन्तु प्राप्नुयातमेव ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सुयुग्भिः) सुष्ठु योजितैः (अश्वैः) अग्न्यादिभिः पदार्थैः (सुवृता) यः सुष्ठु वर्त्तते तेन (रथेन) विमानादियानेन (दस्रौ) दुःखानामुपक्षेतारौ (इमम्) (शृणुतम्) (श्लोकम्) वाचम् (अद्रेः) मेघस्येव (किम्) (अङ्ग) (वाम्) (प्रति) (अवर्त्तिम्) अवर्त्तमानाम् (गमिष्ठा) अतिशयेन गन्तारौ (आहुः) कथयन्ति (विप्रासः) मेधाविनो विपश्चितः (अश्विना) सूर्य्याचन्द्रमसाविव वर्त्तमानावध्यापकोपदेशकौ (पुराजाः) पूर्वं जाताः ॥३॥
भावार्थभाषाः - ये विद्वांसोऽग्न्यादिविद्यया चालितैर्यानैर्व्यवहरेयुस्ते किं किमैश्वर्य्यं न लभेरन् ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे विद्वान लोक अग्नी इत्यादी विद्येने चालविलेल्या वाहनांनी व्यवहार करतात त्यांना कोणते ऐश्वर्य प्राप्त होणार नाही? ॥ ३ ॥